डॉ. धर्मवीर यादव
योग विशेषज्ञ, इंदिरा गांधी विश्विद्यालय रेवाड़ी हरियाणा
मोबाइल न.: 9466431860 | ईमेल: dharambiryadav.yogi@gmail.com
पंच तत्वों पृथ्वी अग्नि जल वायु और आकाश से मानव शरीर बना हैं। पांच आसनों के अभ्यास से पंच तत्वों में संतुलन स्थापित कर बनाएं जीवन को आरोग्यपूर्ण।
पूरी दुनिया में कल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जायेगा। जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को स्वास्थ्य , प्रकृति और अपने जीवन रूपी कर्तव्य के प्रति जागरूक करना है।
योगासन योग का आधार है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जब व्यक्ति स्थिर और सुखपूर्वक आसनों को सिद्ध कर लेता है तब ही साधक अपने परम लक्ष्य को प्राप्त सकता है।
भगवान शिव ने आसनों की संख्या योनियों की संख्या के आधार पर 84 लाख बताई हैं। कुछ योगाचार्यों ने उनमें से 84 आसनों को सर्वश्रेष्ठ कहा है। लेकिन इतने आसन करना सभी के लिए संभव नहीं है। अतः इन 84 आसनों में से 5 अति आवश्यक आसनों को जानेंगे। जिन्हे किसी भी आयुवर्ग का कोई भी व्यक्ति आसानी से नियमित रूप से अभ्यास करके अपने शरीर को सुदृढ़, सबल और सुडौल बना सकता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। शरीर ही वो मध्यम है जिससे हम अपने सभी कार्य पूर्ण कर पाते हैं। शरीर और मन को लंबे समय तक स्वस्थ रखना है तो योग के पांच आसनों को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाना पड़ेगा।
ध्यान रखें
- प्रारंभ में नए अभ्यासकर्ताओं को योगासनों का अभ्यास योग विशेषज्ञ के निर्देशन में ही करना चाहिए।
- योगासनों का अभ्यास अपनी शक्ति, सामर्थ्य, क्षमता, उम्र, लिंग, रोग की अवस्था और स्वयं की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।
- योगासन करने के दौरान स्थान, विधि, आवृति, समय, मौसम,ऋतु आदि का भी ध्यान रखना चाहिए।
- योगाभ्यसी को आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए तब ही पूर्ण लाभ मिलेगा।
- मौसम अनुसार आरामदायक वस्त्र पहनकर ही योगाभ्यास करना चाहिए।
- देखा देखी, अति उत्साह, प्रतिस्पर्धा में योगाभ्यास नहीं करना चाहिए अन्यथा लाभ की जगह हानि होने की संभावना अधिक रहती है।
- प्रातःकाल का समय योगाभ्यास के लिए अति उत्तम रहता है।
- गर्भवती महिलाएं और महावारी के समय योगाभ्यास निर्देशानुसार ही करना चाहिए।
- सभी योगासनों का काउंटर पोज अवश्य करें।
- सभी योगासनों की शवांसो के संतुलन के साथ कम से कम तीन आवृत्तियां अवश्य करें।
1. ताड़ासन
इस आसन को खड़े होकर किया जाता है। ताड़ एक वृक्ष का नाम है जो नारियल व खजूर वृक्ष की तरह लंबा होता है। इस आसन में शरीर की स्थिति ताड़ के वृक्ष की तरह दिखाई देती है। इसलिए इसे ताड़ासन कहते हैं।
इस आसन में दोनों पैर की एड़ियों को उठाते हुए , दोनो हाथों को इंटरलॉक करके ऊपर की तरफ खींचा जाता है। जैसे चित्र में दिखाया गया है।
लाभ
शरीर स्थिरता आती है और मन एकाग्र होता है।
बच्चों के कद में वृद्धि होती है।
घुटनों का मिलना और पैरों का चपटा होना ठीक होता है।
श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र मजबूत होता है।
2 .पश्चिमोतानासन
इस आसन को बैठकर किया जाता है। इस आसन में शरीर के पिछ्ले हिस्से को आगे की तरफ खींचते हुए दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे को पकड़ना होता है और सिर को घुटनों पर लगाया जाता है। जैसा चित्र में दिखाया गया है।
लाभ
- इस आसन से शरीर की अतिरिक्त चर्बी कम होती है।
- बच्चों की हाईट बढ़ती है
- गैस, कब्ज, अपच, शुगर, बवासीर, वीर्यदोष, मूत्र रोग, लीवर, किडनी, पैंक्रियाज , प्लीहा के रोग एवं महिलाओं के गर्भाश्य संबंधी दोष मिटते हैं।
3. भुजंगासन
यह आसन पेट के बल लेटकर किया जाता है। इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाए सर्प की तरह बनती हैं इसलिए इस आसन को भुजंगासन अर्थात कोबरा पोज कहा जाता है।
इस आसन में हाथों की सहायता से श्वास भरते हुए सिर और छाती को नाभी क्षेत्र तक उठाया जाता है। जैसा चित्र में दिखाया गया है।
लाभ
- इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर की जकड़न दूर होती है और छाती का पूर्ण विकास होता है ।
- बच्चों की हाईट बढाने में सहायक होता है
- भूख खुलकर लगती है।
- जुकाम ,नजला, खांसी, टीबी, दमा आदि श्वसन संबंधित रोगों में लाभकारी है।
- पेट संबंधित रोगों में लाभकारी है।
- मोटापा कम होता है और शरीर सुंदर तथा सुडौल बनता है।
4. सर्वांगासन
इस आसन को को सभी योगासनों की रानी कहा जाता है। क्योंकि इस आसन के अभ्यास से शरीर के सभी अंगों को लाभ मिलता है।
यह आसन कमर के बल लेटकर किया जाता है। इस आसन में श्वास की गति को सामान्य रखते हुए, दोनों पैरों को और कमर को दोनों हाथों की सहायता से 90° के कौन पर उठाया जाता है। जैसा चित्र में दिखाया गया है।
लाभ
- थायराइड, मधुमेह, कब्ज , वेरिकोज वेन, अनियमित मासिक धर्म, गर्भाशय रोग और मूत्र विकारों में विशेष लाभकारी है।
- बच्चों की हाईट बढाने में सहायक होता है।
- स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- त्वचागत रोग मिटते हैं।
- शरीर में शक्ति और ऊर्जा का संतुलन होता है।
- पंच तत्वों में संतुलन स्थापित होता है।
5. हलासन
इस आसन की पूर्ण स्थिति में शरीर की आकृति खेतों की जुताई वाले हल की तरह दिखाई देती है। इसी कारण इस आसन को हलासन कहा जाता है।
जिस प्रकार खेतों में हल चलाने से हरियाली आती है ठीक उसी प्रकार हलासन के अभ्यास से शरीर में ताजगी स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार होता है।
सर्वांगासन में जाने के बाद श्वास प्रक्रिया को सामान्य रखते हुए, जब दोनों पैरों के अंगूठों को सिर के पीछे जमीन पर टिकाया जाता है तब हलासन की स्थिति बनती है। जैसा चित्र में दिखाया गया है ।
लाभ
- कद वृद्धि के लिए उपयोगी अभ्यास है।
- शरीर की अतिरिक्त चर्बी को कम करने में मदद करता है।
- मेरुदंड लचीला होता है और स्नायु तंत्र के रोग दूर होते हैं।
- चेहरे पर फुंसियां, दाग धब्बे, झुर्रियां, बालों का टूटना, झड़ना और त्वचा रोगों में लाभकारी है।
- मोटापा, कब्ज, बवासीर, मधुमेह, बहुमूत्र, थायराइड, तनाव, चिंता,थकान, अस्थमा आदि समस्याओं में विशेष लाभकारी है।