National Naturopathy Day
के अवसर पर विशेष लेख
डॉ. धर्मवीर यादव
योग प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ
प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ भरी जिंदगी में प्राकृतिक चिकित्सा अमृत के समान : डॉ धर्मवीर यादव
अंतराष्ट्रीय योग दिवस की तरह भारत में हर साल 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक चिकित्सा नामक औषधि रहित चिकित्सा पद्धति के माध्यम से समग्र मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है। आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी), भारत सरकार के द्वारा द्वारा 18 नवंबर, 2018 को नेशनल नेचुरोपैथी डे घोषित किया गया था। तब से प्रत्येक 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस का आयोजन भारत देश के लगभग सभी शहरों, तहसीलों, जिलों और राज्यों में पूरे उत्साह से हो रहा है। इस वर्ष 18 नवंबर को इंटरनेशनल नैचुरोपैथी ऑर्गेनाइजेशन और आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में विकसित भारत 2047 के निर्माण में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की भूमिका विषय पर राष्ट्रीय महाधिवेशन आयोजित किया जा रहा है।
महात्मा गांधी को भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का जनक माना जाता है। महात्मा गांधी प्राकृतिक चिकित्सा के बहुत बड़े प्रेमी ही नहीं थे बल्कि प्रकृति के अनुसार जीवन को जीते थे। लेकिन आधुनिक समय में भारत देश में इस चिकित्सा पद्धति को लोकप्रिय बनाने का श्रेय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को ही जाता है। महात्मा गांधी इस चिकित्सा पद्धति के बहुत बड़े अनुसरणकर्ता थे।महात्मा गांधी ने प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न प्रकल्पों को गहराई से अध्ययन किया और अपने साथ-साथ अन्य लोगों पर प्रयोग भी किया। इसके बाद महात्मा गांधी ने नवजीवन तथा हरिजन पत्रिका में प्राकृतिक चिकित्सा संबंधी अनेक लेख भी लिखे थे। महात्मा गांधी का उद्देश्य था कि यह चिकित्सा पद्धति सरल है सस्ती है इसलिए गांव-गांव तक जरूर पहुंचनी चाहिए। इसलिए महात्मा गांधी ने सबसे पहले पुणे महाराष्ट्र में प्राकृतिक चिकित्सालय की स्थापना की थी।
18 नवंबर 1945 को महात्मा गांधी अखिल भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा फाउंडेशन ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष बने और प्राकृतिक चिकित्सा के लाभों को सभी वर्गों के लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से विलेख पर हस्ताक्षर किए थे।इसी कारण 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा पंच तत्वों पर आधारित चिकित्सा पद्धति है। हालांकि महात्मा गांधी षट् तत्वों को महत्व देते हैं । महात्मा गांधी छठा तत्व ईश्वर गॉड अथवा राम नाम को मानते हैं। क्योंकि यह चिकित्सा पद्धति विश्वास और आस्था पर आधारित है। इसलिए ईश्वरीय तत्व या आत्म तत्वों का भी इस चिकित्सा में विशेष महत्व है। पृथ्वी अग्नि जल वायु और आकाश ये पंच महाभूत तभी सक्रिय हो पाते हैं जब ईश्वरीय तत्व इनका सहयोग करता है।
इन्हीं पांच मूल तत्वों से संपूर्ण ब्रह्मांड और हमारा शरीर बना है। जब इन पांचो तत्वों में असंतुलन स्थापित होता है, तब हमारा शरीर रोगी हो जाता है। और जब प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न विधियां से इन पंच तत्वों में संतुलन स्थापित किया जाता है तब हमारा शरीर पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है।
तुलसीदास जी ने भी मानव शरीर को पांच मुख्य तत्वों से निर्मित बताया है रामचरित्र मानस में किष्किंधा कांड में तुलसीदास जी कहते हैं कि ईश्वर ने ही पांच तत्वों के सहयोग से मानव शरीर की रचना की है
क्षितिज जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
प्राकृतिक चिकित्सा में पंचतत्व (पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश) एवं महत् तत्त्व के समन्वय से सभी प्रकार के रोगों का उपचार किया जाता है। हालांकि प्रत्येक तत्व अपने आप में पूर्ण चिकित्सा है। प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि जब शरीर में पांचो तत्वों में असंतुलन होता है अर्थात किसी भी तत्व का शरीर में अधिक या कम होने से ही रोग होता है। शरीर में जिस तत्व की कमी या अधिकता है उसका निरीक्षण करके प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ उस तत्व को प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न प्रयोगों से संतुलित करके रोग निदान करता है।
इस चिकित्सा पद्धति की सबसे अच्छी विशेषता यह है कि इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं ।प्राकृतिक चिकित्सा का उपचार किसी भी उम्र में, किसी भी रोग से ग्रसित व्यक्ति ले सकता है । यह चिकित्सा पद्धति पूरी तरह संयम एवं साधना पर आधारित है।
प्राकृतिक चिकित्सा के प्रमुख उपचार
कटि स्नान: यह स्नान पेट से संबंधित सभी रोगों में लाभकारी है।
स्टीम बाथ: यह स्नान त्वचा रोगों एवं कफ रोगों में बहुत ही लाभकारी होता है।
रीढ़ स्नान : यह स्नान तंत्रिका तंत्र से संबंधित सभी रोगों में बहुत ही उपयोगी होता है।
मेहन स्नान:
यह स्नान महिला और पुरुषों के प्रजनन अंगों से संबंधित होता है।
इस स्नान से महिला और पुरुषों के मूत्र दोष, गर्भाशय दोष , वीर्यदोष दूर होते हैं।
पाद हस्त स्नान :
यह स्नान गर्म पानी में लिया जाता है। इस स्नान से सर्दी खांसी जुकाम दमा आदि रोगों में तुरंत आराम मिलता है। अनिद्रा सरदर्द तनाव पैरों में दर्द सूजन अकड़न जकड़न आंख नाक में कान के रोग एवं स्नायु तंत्र के रोगों में यह स्नान बहुत ही उपयोगी होता है।
मिट्टी पट्टी : प्राकृतिक चिकित्सा में पेट की सफाई को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है इसलिए पेट पर और रोगानुसार शरीर के विभिन्न अंगों पर मिट्टी की पट्टी रखी जाती है। मिट्टी में रोग नाशक अनेक गुण होते हैं।
ठंडा गर्म सेंक :
मिट्टी पट्टी के बाद पेट का ठंडा गरम सेंक किया जाता है ताकि आंतों में जमा हुआ मल अपना स्थान आसानी से छोड़ दे।
एनिमा: आंतों में पड़ा हुआ और सड़ा हुआ मल ही सभी रोगों का प्रमुख कारण माना जाता है। इसलिए एनिमा से आंतों में चिपके हुए मल को धो दिया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में एनिमा का सर्वोपरि स्थान है।
सर्वांग मिट्टी लेप :
संपूर्ण शरीर पर मिट्टी का लेपन करने से कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं। त्वचागत रोग मिटाते हैं ,पित्त शांत होता है और शरीर में ठंडक उत्पन्न होती है।
सूर्य चिकित्सा : प्राकृतिक चिकित्सा में अग्नि तत्व चिकित्सा के अंतर्गत देश और दुनिया में सदियों से सूर्य चिकित्सा से असाध्य रोगों का निवारण किया जा रहा है। सूर्य चिकित्सा में सप्त किरण स्नान, साधारण धूप स्नान, रिक्ली का धूप स्नान आदि प्रमुख एवं प्रचलित स्नान है।
सर्दियों के मौसम में सूर्य स्नान का लाभ सभी लोग उठाते हैं और इस स्नान से शरीर के शारीरिक और मानसिक विकार मिटाते हैं । साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। और नैसर्गिक रूप से शरीर को विटामिन डी की प्राप्ति होती है। इस स्नान से टीबी, दमा , श्वास रोग, रक्त की कमी, लीवर की खराबी, आंखों की समस्या, जोड़ो में दर्द, चर्मरोग, शरीर में कमजोरी आदि में लाभ मिलता है।
आकाश तत्वों के अंतर्गत उपवास चिकित्सा की जाती है। उपवास को प्राकृतिक चिकित्सा का ब्रह्मास्त्र कहा जाता है। उपवास अपने आप में एक पूर्ण चिकित्सा है। उपवास काल में हम पवित्र मन व तन के साथ ईश्वर के सबसे नजदीक रहते हैं। महात्मा गांधी कहते हैं कि उपवास आत्मशुद्धि एवं आध्यात्मिक शक्ति के लिए एक उपकरण है। उपवास से शरीर में स्थित विषाक्त पदार्थ का निष्कासन हो जाता है। अर्थात शरीर पूरी तरह से स्वस्थ होकर कायाकल्प हो जाता है। सभी प्रकार के चर्म रोग, कफ रोग, फोड़े फुंसियां , मूत्र रोग , हृदय रोगठीक होते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।
पांच तत्वों के अतिरिक्त मंत्रों से, प्रार्थना से ,ईश्वर चिंतन से, ध्यान से, आत्म समर्पण से, भक्ति भाव से, श्रद्धा ,समर्पण एवं विश्वास से यदि प्राकृतिक चिकित्सा की जाए तो निसंदेह रोगी बहुत कम समय में आरोग्य प्राप्त कर सकता है। वर्तमान में निरंतर हो रही रिसर्च से पता चलता है की प्रार्थना ,मंत्र, उच्चारण, ईश ध्यान आदि से भयंकर से भयंकर रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा बहुत ही सरल सस्ती और सर्वशुलभ उपलब्ध है। इसलिए इस कुदरती उपचार पद्धति से जुड़कर व्यक्ति आरोग्य पूर्ण जीवन जी सकता है। ईश्वर प्रदत इस चिकित्सा पद्धति को पहले स्वयं अपने जीवन में धारण करें और लोगों तक अधिक से अधिक इसका प्रचार किया जाए तब ही हम स्वस्थ,संस्कारवान,खुशहाल ,और स्वावलंबी भारत निर्माण की संकल्पना को साकार रूप दे पाएंगे।