अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर करवाए जाने वाले योग प्रोटोकॉल का प्रथम प्राणायाम नाड़ी शोधन
योग आचार्य डॉ. धर्मवीर यादव
योग प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ
21 जून विश्व योग दिवस के अवसर पर पूरी दुनिया में कॉमन योग प्रोटोकॉल का अभ्यास करवाया जाता है। जिसमें प्रार्थना, सूक्ष्म व्यायाम, आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का अभ्यास करवाया जाता है।
योग प्रोटोकॉल में तीन प्राणायाम – नाड़ी शोधन, शीतली, भ्रामरी और एक यौगिक क्रिया कपालभाति का अभ्यास करवाया जाता है।
योग प्रोटोकॉल में आज हम जानेंगे नाड़ी शोधन प्राणायाम के बारे में।
नाड़ी शोधन प्राणायाम का वर्णन हठ प्रदीपिका, घेरंड संहिता, हठरत्नावली आदि ग्रंथों में मिलता है। मानव शरीर में 72 हजार नाड़िया है। जब इन 72 हजार नाड़ियों में विकार आ जाता है तब ही मानव शरीर रोगी होता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम के द्वारा इन 72 हजार नाड़ियों की शुद्धि की जाती है।
इस प्राणायाम में दाएं एवं बाय नासिका रंध्रों से एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा पूरक ,कुंभक और रेचक के साथ श्वसन किया जाता है। दाएं नथुने को सूर्य स्वर और बाएं नथुने को चंद्र स्वर के नाम से योग ग्रंथों में जाना जाता है । सूर्य स्वर से शरीर में गर्मी पैदा होती है जबकि चंद्र स्वर से शरीर में ठंडक पैदा होती है। अतः दोनों नथुनों में सामंजस्य स्थापित करके इड़ा पिंगला नाड़ी में संतुलन स्थापित किया जाता है। जिससे मेरुदंड में स्थित सुषुम्ना नाड़ी उत्तेजित हो जाती है और आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है।
अभ्यास विधि
- अपनी स्वेच्छा से किसी धनात्मक आसन का चुनाव करें।
- कमर एवं गर्दन को सीधा रखें।
- सहजता से दोनों आंखों को बंद करें।
- लंबी और गहरी सांसों के साथ शरीर को शिथिल करें।
- बाएं हाथ को ज्ञान मुद्रा में बाय घुटने के ऊपर रखें।
- दाएं हाथ को प्रणव मुद्रा अर्थात नासाग्रा मुद्रा में रखें।
- दाएं हाथ की तर्जनी एवं मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाएं तथा अंगूठे को दाएं नासिकारंध्र पर रखें।
- दाईं नासिक को अंगूठे से बंद करते हुए बाई नासिक से धीरे-धीरे श्वास ग्रहण करें।
- अब श्वास को अंदर कुछ देर रोकें अर्थात कुंभक लगाएं।
- इसके बाद अंतिम दो उंगलियों से बाई नासिक को बंद करें और दाईं नासिका से अंगूठे को हटाकर धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दें।
- यह एक चक्र पूर्ण हुआ।
- इस प्रक्रिया को कम से कम 10 बार तक दोहराएं।
ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु
प्रारंभ में श्वास की गति सामान रखें जैसे 5 सेकंड में सांस लेना,5 सेकंड रोकना और 5 सेकंड में श्वास छोड़ना चाहिए। कुछ दिनों के अभ्यास के बाद श्वास प्रश्वास का अनुपात (1:4: 2 ) कर सकते हैं। अर्थात् 15 सेकंड में पूरक करना, 60 सेकंड कुंभक करना और 30 सेकंड में श्वास को बाहर छोड़ना।
विशेष
- शुरुआत में योग विशेषज्ञ के निर्देशानुसार ही इस प्राणायाम का अभ्यास करें
- अपनी क्षमता, रोग, स्थिति, ऋतु, मौसम आदि को ध्यान में रखते हुए ही इस अभ्यास को करें।
- अगर श्वास लेने में दिक्कत या अस्थमा आदि की अधिक समस्या है तो योग चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही इस अभ्यास को करें।
प्राणायाम के तीन महत्वपूर्ण शब्द
- पूरक: जब हम नासिक से श्वास को फेफड़ों में अंदर ग्रहण करते हैं तब उसे योग की भाषा में पूरक कहा जाता है।
- रेचक जब हम फेफड़ों से श्वास को नासिकाओं से बाहर निकालते हैं तब उसे योग की भाषा में रेचक कहा जाता है।3. कुम्भक
जब हम श्वास को अंदर ही फेफड़ों में रोक कर रखते हैं तब उसे योग की भाषा में कुंभक कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है एक अंतः कुंभक और दूसरा बाह्य कुंभक।
अंतः कुंभक श्वास को फेफड़ों में भरने के बाद उसे अंदर ही रोक कर रखना अतः कुंभक कहा जाता है।
बाह्य कुंभक
फेफड़ों से श्वास को बाहर निकालने के बाद उसे कुछ देर बाहर ही रोककर रखना बाह्य कुंभक कहलाता है।
क्या आप जानते हैं
- अनुलोम विलोम प्राणायाम को नाड़ी शोधन प्राणायाम का पूर्वाभ्यास कहा जाता है।
- नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास में श्वास की गति धीमी, गहरी और तालबद्ध होती है तथा कुंभक का प्रयोग किया जाता है। जबकि अनुलोम विलोम में कुंभक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
लाभ
- शरीर में स्थित 72000 नाड़ियों की शुद्धि होती है।
- तनाव, चिंता, अवसाद, डर, भय, निराशा, क्रोध, सिर दर्द, माइग्रेन, स्नायु दुर्बलता आदि रोगों को दूर करने में सहायक है।
- सर्दी, खांसी, नजला, टॉन्सिल, अस्थमा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, त्वचा रोग, फोड़े फुंसियां, दाद खुजली आदि रोग में बहुत लाभप्रद है।
- मन की चंचलता दूर होकर एकाग्रता बढ़ती है।
- नेत्र ज्योति, स्मरण शक्ति एवं जीवनी शक्ति को बढ़ाता है।
- रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
- आत्मविश्वास बढ़ता है।
- शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
- शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है।
लेखक परिचय
योग आचार्य डॉ धर्मवीर यादव पिछले 15 वर्षों से योग प्राकृतिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। डॉ धर्मवीर, विश्व प्रसिद्ध योगगुरु डॉ सोमवीर आर्य के साथ मिलकर 10 से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। योग ए वे ऑफ लाइफ हिंदी और इंग्लिश मीडियम इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। इसी बुक के संदर्भ से इस प्राणायाम पर प्रकाश डाला गया है।