अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) पर करवाए जाने वाले योग प्रोटोकॉल का अंतिम अभ्यास ध्यान
प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ भरी जिंदगी में ध्यान संजीवनी औषधि से कम नहीं
डॉ धर्मवीर योगाचार्य
इंदिरा गांधी विश्विद्यालय रेवाड़ी
Mob 9466431860
वर्तमान की प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य अशांत और दुखी होता जा रहा है। जीवन में कहीं भी संयम, धैर्य या ठहराव नहीं है। जिसकी वजह से आज मानव अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों का शिकार होता जा रहा है। जिसका एकमात्र समाधान ध्यान का अभ्यास है। योग आचार्य डॉ धर्मवीर बताते हैं कि यदि नियमित यदि 20 मिनट निरंतर ध्यान का अभ्यास किया जाए तो हम सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि ध्यान वर्तमान की संजीवनी औषधि से कम नहीं है।
मन बहुत ही चंचल है, जो भूत और भविष्य की उधेड़बुन में उलझा रहता है। वर्तमान में मन बहुत कम ठहर पता है। पूरी जागरूकता, सतर्कता एवं चेतना के साथ वर्तमान में रहना ही ध्यान है। ध्यान एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो अंतर्गत की यात्रा है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि धारणा में जहां मन को टिकाया है अथवा ठहराया है उसमें निरंतरता का बने रहना ही ध्यान है। सांख्य दर्शन में महर्षि कपिल जी भी कहते हैं।
ध्यानं निर्विषय ध्यानम
चेतना के साथ मन की शून्य अवस्था ही ध्यान है। जब हमारा मन इंद्रियों के विषयों से मुक्त हो जाता है तब ध्यान स्वतः ही लग जाता है। प्राचीन काल से वर्तमान समय तक ध्यान की अनेक विधियां प्रचलित रही हैं। वर्तमान में प्रेक्षा ध्यान, विपश्यना ध्यान, भावातीत ध्यान, सगुण ध्यान, निर्गुण ध्यान, जिब्रिस ध्यान , साइक्लिक ध्यान, ओम ध्यान आदि ध्यान की विद्या प्रचलित है। योग दर्शन में महर्षि पतंजलि कहते हैं साधक को अपने मत, पंथ, स्वभाव के अनुरूप ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है। क्योंकि सभी का स्वभाव, गुण, कर्म एवं चित् की अवस्था अलग-अलग है। अतः अपने मत के अनुसार सगुण या निर्गुण ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं।
श्वासों पर ध्यान
यह ध्यान की सबसे सरल विधि है। इसमें केवल आती-जाती सांसों पर ही ध्यान लगाना होता है। इस विधि में पूरी सजकता से आती-जाती सांसों को सहज भाव से अतः चक्षुओं से देखा जाता है।
सांसों पर ध्यान लगाने की विधि
- सर्वप्रथम अपनी सुविधा अनुसार किसी भी ध्यानात्मक आसन में आराम से बैठ जाएं।
- हाथों को ज्ञान मुद्रा या ध्यान मुद्रा में रखें।
- सहजता से आंखें बंद करें लंबा व गहरा श्वास ले और छोड़ दे।
- माथे, चेहरे ,आंखों में और कंधों पर किसी भी प्रकार का कोई तनाव दबाव न रहें।
- किसी भी शुभ अशुभ अच्छे बुरे विचार को न पकड़े, केवल तटस्थ भाव से विचारों को देखते रहे ।
- आते जाते सांसों को न छोटा करें और न लंबा करें, जो चल रहा है उसे ही महसूस करें अर्थात आती जाती सांसों को सहज भाव से मन की आंखों से देखते रहे।
- धीरे-धीरे श्वास स्वतः ही गहरा होता चला जाएगा।
- इस स्थिति को 5 से 15 मिनट तक बनाएं रखने का प्रयास करें।
- ध्यान समापन करते समय लंबा व गहरा सांस लें और दोनों हथेलियां को घर्षण करके आंखों पर रखें । हथेलियां को चेहरे से स्पर्श करते हुए हटाए और आंखों को टिमटिमाते हुए जमीन की तरफ देखते हुए खोल लें।
ध्यान रखने योग्य बातें
- शुरुआत में ध्यान का अभ्यास योग एक्सपर्ट के सानिध्य में ही करना चाहिए।
- ध्यान का अभ्यास शुद्ध एवं शांत प्राकृतिक वातावरण में करें।
- ज्ञान का प्रारंभ धीरे-धीरे करें और समापन भी धीरे-धीरे करें।
ध्यान करने से ये फायदा होगा
- नकारात्मक विचार दूर होते हैं एवं सकारात्मक भावनाएं विकसित होती है।
- तनाव, चिंता ,अवसाद, क्रोध व भय दूर होकर मनोबल बढ़ता है।
- मस्तिष्क शांत होता है, एकाग्रता व स्मृति बढ़ती है।
- शरीर एवं मन को पूर्ण विश्राम मिल जाता है जिसे शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है।
- संपूर्ण शरीर के आंतरिक अंगों की क्रियाशीलता को व्यवस्थित करता है।
- ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति में सुप्त अवस्था में पड़ी हुई शक्तियों का जागरण होता है।
क्या आप जानते हैं ?
- निरंतर ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति समाधि की अवस्था को भी प्राप्त कर सकता है।
- महर्षि पतंजलि की अष्टांग योग में ज्ञान का सातवें अंग के रूप में वर्णन करते हैं